Success Stories
सफलता की कहानी
हुनर ने दिलाई स्वंय सहायता समूह को पहचान
वैसे तो कृशि विज्ञान केन्दª, बांसवाड़ा ने महिला सषक्तिकरण की दिषा में कई कदम उठाये है ओर सफलता भी हासिल की है और ज्यादातर सफल कहानियो की हकदार अकेली महिला ही होती थी लेकिन पहली बार किसी स्वयं सहायता समूह ने जिले मे अपने हुनर के बल पर अपनी पहचान बनाई है। वर्श 2011 की बात है तब कृशि विज्ञान केन्दª, बांसवाड़ा पर राजस्थान आजीविका मिषन द्वारा प्रायोजित 80 दिवसीय टेलर लेडीस प्रषिक्षण चल रहा था उस समय मुख्य प्रषिक्षक के रूप मे श्रीमती प्रभा सोनी प्रषिक्षणार्थियो को सिलाई कला का प्रषिक्षण दे रही थी। 80 दिनो तक साथ काम करते करते सभी के बीच एक आत्मीय सबधं स्थापित हो गया था। प्रषिक्षण जब समाप्ति पर था तब कृशि विज्ञान केन्दª की तकनीकी सहायक श्रीमती रष्मि दवे ने प्रयास किया कि सभी को एक समूह द्वारा जोड़ दिया जाए जिससे सभी हर महीने मिल पायेंगे व साथ काम कर पायेगें। सभी प्रषिक्षणर्थी तैयार हो गये व उन महिलाओं का एक समूह बनाया गया जिसका नाम रखा गया ‘‘ मां त्रिपुरा स्वयं सहायता समूह ’’, अब हर महीने केन्दª पर मासिक बैठक होने लगी व सभी रूचिपूर्वक भाग लेकर काम कर रही थी। फिर इस समूह को बैंक से जोड़ने की कवायद षुरू की गयी। ग्रामीण विकास ट्रस्ट के माध्यम से इस समूह को बैंक से जोड़ा गया। समूह मे मुख्य प्रषिक्षक सहित 14 महिलायें थी। बैंक से जुड़ने के बाद समूह मे आत्मविषवास की वृद्वि हुई। सभी बारी बारी से लोन लेकर सिलाई करने लगी। अब तक सभी अपने अपने घर पर ही सिलाई कार्य कर रही थी। तभी समूह की अध्यक्ष व कृशि विज्ञान केन्दª की तकनीकी सहायक ने योजना बनाई कि क्यो ना समूह का एक बूटीक खोला जायंे ओर इस विचार को सार्थक करने का भरसक प्रयास किया गया व समूह की अध्यक्ष ने पहल करके बांसवाड़ा का पहला डिजाइनर बूटीक ’’रूप सुन्दरी‘‘ के नाम से खोला। पहले पहले तो महिलाओ को बहुत परेषानी हुई क्योकिं धन पर्याप्त नही था लेकिन उनके हाथ के हुनर के आगे सारी परेषानियो ने घुटने टेक दिये। बूटीक ने रफ्तार पकड़ी व आसपास के लोगो ने अपने डिजाइनर परिधान बनवा कर उनके काम को सराहा। एक एक कर सभी स्वंय सहायता समूह की महिलायें बूटीक से जुड़ गयी कुछ को घर के लिये सिलाई कार्य दिया जाता, कुछ को मार्केटिंग सीखाई गयी। कुछ महिलायें बूटीक ही सभंालती। आखिरकार बूटीक का सब खर्चा सिले हुये वस्त्रो की सिलाई से निकलने लगा ओर रूप सुन्दरी बूटीक ने बांसवाड़ा षहर मे अपनी पहचान बना ली। उन्ही दिनों बांसवाड़ा मे फैषन षो आयोजित होने वाला था। प्रायोजको ने रूप सुन्दरी बूटीक को यह अवसर प्रदान किया कि वेे इस षो मे अपने परिधानों का प्रचार करे। सभी समूह की महिलाओं ने इस षो की तेयारियां जोर षोर से षुरू कर दी, दिन रात मेहनत करके डिजाइनर कपडे़ राजस्थानी थीम को लेकर बनाये व फैषन षो के लिये रेम्प पर चलने का भी प्रषिक्षण लिया। षो वाले दिन सभी उत्साहित थी ओर उन्होने अपना कार्यक्रम पेष किया। षहरवासियों की भरपूर तालियांे के बीच उनके परिधानों को खूब सराहना मिली ओर समूह को खूब सारे आर्डर मिले। लोन की सभी किष्ते समय पर जमा होने के कारण बैंक लिंकेज कार्यक्रम के तहत इस समूह को उत्क्रश्ठ समूह के रूप में सम्मानित किया गया व सभी को प्रषस्ति पत्र प्रदान किये गये। समूह की सभी महिलायें बहुत खुष है क्योकिं इस समूह मे उन्हे आज साधारण महिला से सफल उद्यमी तक पहुचा दिया था। इस समूह की सफलता को देखते हुये केन्दª का प्रयास है कि ऐसे ही, लम्बे अवधि के प्रषिक्षणों मे कृशक महिलाआंे के स्वंय सहायता समूह बनाकर उनको आर्थिक व सामाजिक लाभ दिलाया जा सके।
स्वयं सहायता समूह ने दिलाई पहचान
27 वर्शीय विनिता ठाकुर ने कभी सोचा नहीं था कि जीने का मकसद उसे इस तरह मिल जायेगा। जब विनिता का विवाह हुआ तब किसी तरह का कौषल नहीं जानती थी। लेकिन विवाह के कुछ वर्शों बाद ही वैवाहिक जीवन बोझ बन गया और वह अपने मायके में रहने लगी। कमा नहीं पाने की वजह से वह अपना आत्मविष्वास खो चुकी थी। ऐसे समय में विनिता कृशि विज्ञान केन्द्र के स्वयं सहायता समूह से जुड़ी और समूह द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों में भाग लिया। विनिता द्वारा तैयार किए गए उत्पाद सभी को पंसद आने लगे। केन्द्र की रष्मि दवे ने विनिता का सम्पर्क मुख्य सिलाई प्रषिक्षक से करवा दिया व दोनों को मिलजुल कर कार्य कर आगे बढ़ने की सलाह दी।
सिलाई का ज्ञान तो विनिता को पहले से ही था और मुख्य प्रषिक्षक से पूर्ण कौषल ग्रहण कर सिलाई करने लगी। वस्त्रों की सिलाई सभी ग्राहकों को संतोशप्रद लगी और दिन ब दिन सिलाई कार्य अधिक आने लगा। विनिता का आत्मविष्वास बढ़ने लगा और वो अधिक मेहनत से कार्य करने लगी। साल भर में ही देखते-देखते विनिता ने 15,000 रू. से अधिक का सिलाई व्यवसाय किया। विनिता ने केवीके द्वारा आयोजित अन्य महिला प्रषिक्षणों में भी हिस्सा लिया। फल, सब्जी परिरक्षण, मक्का प्रसंस्करण कार्य सीखने में भी रूचि दिखाई।
विनिता घर पर ही प्रसंस्करण का भी कार्य कर उत्पाद तैयार करते हुए बेचने लगी। आज वो अपने आप पर गर्व महसूस करती है व समूह की महिलाओं के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत है।
सिलाई प्रषिक्षण ने संवारा जीवन
जसोदा यादव की कहानी भी अपने आप में एक सजीव उदाहरण है। आज से 7 वर्श पूर्व तक जसोदा को कोई नहीं जानता था लेकिन आज जसोदा का गांव उसी के कारण प्रसिद्ध है। साधारण सा जीवन व आर्थिक तंगी से जूझ रही जसोदा को तिनके के सहारे के रूप में कृशि विज्ञान केन्द्र ने सहारा दिया। दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने में भी अक्षम जसोदा ने कृशि विज्ञान केन्द्र में राश्ट्रीय कृशि नवोन्मेशी परियोजना के तहत चल रहे एक माह के सिलाई प्रषिक्षण में हिस्सा लिया। उस समय जसोदा का पति ठेलागाड़ी चला कर आजीविका कमा रहे थे जो कि नही ंके बराबर थी। प्रषिक्षण के पष्चात् जसोदा ने ठान लिया कि पति-पत्नी दोनों ही सिलाई का कार्य करेंगे। पति ने भी जसोदा का साथ दिया और घर में दुकान लगाकर सिलाई कार्य षुरू किया। धीरे-धीरे पीको मषीन भी खरीद ली व साड़ियों की फाॅल पीके करना भी षुरू कर दिया। जसोदा की सफलता एक अहम् कारण यह भी रहा कि उस गांव में अब तक कोई प्रषिक्षित टेलर नहीं थी।जब जसोदा केन्द्र पर आई तो उसकी बातें सुनकर ऐसा लगा मोना कृशि विज्ञान केन्द्र ने उसे नई जिन्दगी दी हो। गांव की सभी महिलाएं जसोदा के आत्मविष्वास से पे्ररित हैं व जसोदा कृशि विज्ञान केन्द्र को जीवन संवारने के लिए धन्यवाद देती है।
जसोदा ने बताया कि अब मेरी जिन्दगी खुषहाल है। पति व सभी बच्चे भी मदद करते हैं व बच्चों की जरुरतें आसानी से पूरी हो जाती हैं। जसोदा का कहना है कि हर माह 10,000 से 12,000 रूपये आसानी कमा लेती है और त्यौहार व विवाह अवसरों पर तो खुषियां दोगुनी हो जाती हैं।
छोटी जोत का बड़ा किसान-कालूराम
श्री कालूराम पिता कुरियाजी यादव, निवासी-दषहरा गामड़ी (मो.9928987794) ने अपनी 12 बीघा जमीन को कुछ ही वर्श में इस तरह संभाला की आज वो क्षेत्र के बड़े किसानों की कतार में खड़ा हो गया एवं 20 जिला स्तरिय पुरस्कार जीत कर अपने आप को गोरवान्वित महसूस करता है। उसकी सफलता की कहानी लगभग 5 वर्श पहले कृशि विज्ञान केन्द्र पर उद्यानिकी प्रषिक्षण से प्रारम्भ हुई। प्रषिक्षण के पष्चात् उसने 0.2 हैक्टेयर में पहली बार टमाटर की खेती की जिसे बेचकर उसने लगभग 50 हजार रूपयें की आमदनी प्राप्त की। उसके बाद तो कालूराम ने क्षेत्र में सब्जी उत्पादक के रूप में अपनी पहचान बनाली। टमाटर के बाद भिण्डी, गोभी, करेला, बेगन आदि सभी सब्जीयों की खेती करने लगा एवं अपनी वार्शिक आय लगभग 1.20 लाख से 5 लाख तक पहुचा दी। परन्तु सब्जी उत्पादन एवं सब्जियों के विपणन में आने वाली परेषानियों को देखते हुऐ उसके मन में कुछ और नया करने का जुनून उठा तो उसे कृशि विज्ञान केन्द्र से स्वीट काॅर्न की खेती करने की सलाह दी गई। विगत वर्श नवम्बर में उसने वैज्ञानिक देख-रेख में 0.2 हैक्टेयर में स्वीट काॅर्न (मिठी मक्का) लगाई और उसने लगभग 80 हजार रूपयें के हरे भुट्टे 10 दिन में ही बेच दिये एवं बचे हुऐ भुट्टो के दाने निकाल कर बेच दिये। स्वीट काॅर्न की खेती से उसको दोहरा लाभ हुआ एक तो सब्जियों के उत्पादन में लगने वाले श्रम एवं उनके विपणन में जो समय लगता था उसकी बचत हुई एवं दूसरा पषुओं के लिये हरा चारा मिल गया। उसकी इस सफलता से प्रभावित होकर क्षेत्र के कई अन्य कृशक भी स्वीट काॅर्न की जानकारी हेतु कृशि विज्ञान केन्द्र पर आने लगे हैं।
पपीते की खेती ने किया मालामाल
कृशक का नाम - श्री गणेषलाल पिता श्री कानजी
गाॅव - रतनपुरा (बदरेल)
उम्र - 45 वर्श
विशय - उद्यानिकी
गणेषलाल 2 बीघा क्षेत्र में खेती करके थोड़ा बहुत कमा लेता था लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नही थी जितनी मेहनत कर रहा उसे उसकी कमाई उस अनुपात में नही मिल रही थी काफी परेषान रहता था लेकिन एक दिन वो कृशि विज्ञान केन्द्र पर आयोजित उद्यानिकी प्रषिक्षण में भाग लेने पहुचाॅ तो मानो उसके लिये कई रास्ते खुल गये। गणेना ने पूरी तन्मयता व लगन से उद्यानिकी का प्रषिक्षण लिया व सकल्प लिया कि वह उद्यानिकी के प्रषिक्षण को व्यर्थ नही जाने देगा ताकि दुगुना लाभ कमा सकें। उसने 1 बीघा खेत के लिए कृशि विज्ञान केन्द्र से 400 पपीते के पौधे जो रेड लेडी किस्म के थे उन्हे खरीदा। पपीते की खेती सफल हो उसके लिये केन्द्र के वैज्ञानिकों ने समय-समय पर निरीक्षण किया व मार्गदर्षन प्रदान किया। जून में लगाने हुऐ पपीतों में अगले वर्श अप्रैल में फल आना षुरू हो गये। गणेषलाल ने अत्यन्त हर्श के साथ बताया कि उसके बगीचे से 80-90 क्विंटल पपीते का उत्पादन हुआ है। उन्हें स्थानीय बाजार में बेचकर 70,0000 रूपयें का षुद्व लाभ हुआ है। गणेषलाल ने उद्यानिकी को अपना कर अपने जीवन की राह बदल कर अपना जीवन सुखद बना लिया व उसकी आर्थिक स्थिति में बेहद सुधार हो गया।
सिलाई प्रषिक्षण से पाया रोजगार
नाम - सुश्री चन्दा यादव
गाॅव - सागड़ोद
जिला - बांसवाड़ा
उम्र - 21 वर्श
विशय - लेडीज टेलर
चन्दा पढ़ाई छोड़ने के बाद से घर पर ही थी। थोड़ी बहुत मषीन चलाना जानती थी। घर के फटे पुराने कपड़ो की मरम्मत कर लेती थी। घर पर ही रहने से काफी उदास थी उन दिनों कृशि विज्ञान केन्द्र द्वारा आयोजित व राजस्थान आजीविका मिषन द्वारा प्रायोजित 80 दिवसीय सिलाई कला प्रषिक्षण का विज्ञापन अखबार में देखकर वह केन्द्र पर फार्म लेने आयी व बातचीत में पता चला कि वह सिलाई सीखने को उत्सुक है और बाहर कही सीखने की फीस नही दे सकती है। केन्द्र द्वारा 80 दिवसीय प्रषिद्वण टेलर लेडीज प्रारम्भ हुआ, और यह देखा गया कि चन्दा पूरी लगन व मेहनत से प्रषिक्षण ले रही है। प्रषिक्षण समाप्ति पर सर्टिफिकेट लेते हुऐ उसे गर्व अनुभव हो रहा था। प्रषिक्षण पष्चात् उसने घर पर सिलाई मषीन खरीदी व आस-पास के लोगों के कपड़े सीलने लगी। दो माह में ही चन्दा ने 8000 रूपयें कमा लिये और उन पैसों से उसने पिको मषीन भी खरीद ली। गाॅव में उसकी पहचान लेडीज टेलर के रूप में हो गयी। आज चन्दा का जीवन सुधर गया है उसके चेहरे से आत्मविष्वास झलकने लगा है क्योंकि अब चन्दा किसी पर निर्भर नही बल्कि आत्मनिर्भर है।
टमाटर की लाली से जीवन में छाई खुशहाली
सही निर्णय लेकर अगर सही समय पर सही खेती की जाये तो किसान पाॅच महीने की एक फसल में ही एक हैक्टेयर से पाॅच लाख रूपये का उत्पादन प्राप्त कर सकता है और यह कर दिखाया गामड़ी के युवा कृषक श्री प्रभूलाल यादव ने। प्रभूलाल यादव कक्षा छः तक शिक्षा प्राप्त कर पिछले पाॅच-छः साल से खेती कर रहा था। सामान्यतः उसकी 6 बीघा जमीन पर खरीफ में मक्का, सोयाबीन एवं रबी में गेहूॅ एवं रबी मक्का की खेती कर औसतन 10 से 12 हजार रूपये प्रति बीघा की सकंल आय प्राप्त करता था। जिससे वह हमेशा असन्तुष्ट रहा और कुछ नया करना चाहता था। इसी सोच के तहत् वह कृषि विज्ञान केन्द्र के सम्पर्क में आया जहाॅ उसने टमाटर उत्पादन का प्रशिक्षण लेकर वैज्ञानिक देख-रेख में 1.0 बीघा में हाईब्रिड टमाटर किस्म-देव की खेती करने की तरफ पहला कदम बढ़ाया। इसी वर्ष नवम्बर के प्रथम सप्ताह में टमाटर की पौध लगाकर दिसम्बर के द्वितीय सप्ताह में तुड़ाई प्रारम्भ कर दिनांक 30 मार्च तक उसने 152 क्विंटल टमाटर 1.0 बीघा खेत से उत्पादित कर बाजार में बेचा जिससे उसको 91,000 रूपयें की सकंल आय प्राप्त हुई। खेती में उसका 26,000 का आदान खर्च निकालने के बाद उसे शुद्व 65,000 रूपयें की आय प्राप्त हुई जिससे उसने इसी साल 2 बीघा जमीन एवं 1 भूखण्ड खरीद लिया एवं आगामी ऋतुओं में भी उसने सही समय पर सही वैज्ञानिक तरीके से सब्जीयों की खेती करने का दृढ़ निश्चिय कर लिया। उसकी इस सफलता को देखकर अन्य कई कृषक भी सब्जी की खेती की तरफ अपना मानस बना रहे है।
भिण्डी की खेती ने बनाया लखपति
किसान अपनी मेहनतकश जिंदगी के लिए विश्व विख्यात है। उसकी मेहनत के साथ-साथ यदि उसको तकनीकों का ज्ञान भी हो तो खेती हमेशा लाभ का धंधा साबित होती है। ऐसा ही किया ग्राम-खेड़ा (टामटिया आड़ा) के श्री कान्तिलाल पुत्र श्री गोतमलाल चरपोटा (मो. 09680326650) आठवी पास 32 वर्षीय एक लघु आदिवासी किसान नें। कान्तिलाल के पास 2 बीघा जमीन थाी जिस पर परम्परागत फसलों की खेती कर बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था। यह युवा कृषक वर्ष 2009 में राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत् आयोजित दो दिवसीय भिण्डी उत्पादन की उन्नत प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण शिविर के माध्यम से कृषि विज्ञान केन्द्र, बांसवाड़ा के वैज्ञानिकों के सम्पर्क में आया। प्रशिक्षण के दौरान हायब्रीड भिण्डी की खेती की उन्नत तकनीकों के बारे में बताया गया। हाइब्रीड भिण्डी की खेती करने के लाभः लागत के बारें में दी गई जानकारी से प्रभावित होकर कान्तिलाल ने भिण्डी की खेती करने की मन में ठानी। प्रशिक्षण उपरान्त 2009 में उसके खेत पर 0.2 हैक्टेयर क्षेत्र में हायब्रीड भिण्डी का प्रथम पंक्ति प्रदर्शन भी लगाया। इस प्रदर्शन से कान्तिलाल को 40,000 रूपयें की शुद्व आमदनी प्राप्त हुई। इस प्रदर्शन के परिणाम से उसके जीवन में एक नई रोशनी का प्रादुर्भाव हुआ। अगले ही वर्ष इसने अपनी 2 बीघा जमीन में से 1.5 बीघा जमीन पर बैंगन-भिण्डी की फसल तथा केवल आधा बीघा जमीन पर धान्य फसलें उगाई। इस फसल चक्र से वर्ष 2010-11 में कान्तिलाल ने 1 लाख का शुद्व लाभ कमाया। इस आय से उत्साहित होकर उसने पहली ही साल में एक मोटर साइकिल एवं आधा बीघा कृषि योग्य भूमि भी खरीद डाली। अब यह युवा कृषक सब्जी उत्पादन विशेष रूप से ग्रीष्मकालीन हायब्रीड भिण्डी की खेती से बहुत खुश है। भिण्डी की खेती के अलावा वह टमाटर, मिर्च एवं बैंगन की खेती भी कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों के परामर्श से करने लगा है। कान्तिलाल की अनवरत मेहनत रंग लाई और आज उसके पास खर्च निकालने के बाद थोड़ी-थोडी पूंजी भी जुड़ने लगी है। यह स्पष्ट है कि सब्जी का दायरा बढ़ाने से आमदनी में इजाफा हुआ है। श्री कान्तिलाल की सफलता को देखकर गाँव खेड़ा व उसके आस-पास के कई गाॅवों में कृषकों ने ग्रीष्मकालीन हायबी्रड भिण्डी की खेती करना शुरू कर दिया है। कान्तिलाल ने खेती से जुड़े अपने अनुभव साझा करते हुऐ कहा कि हाथों की मेहनत व उचित तकनीकी ज्ञान इंसान की हैसियत बदलने का मादा रखती है।
Livelihood & Nutritional Security of Tribal Families through Backyard Poultry
Background Information
- Backyard poultry is main supplement source of livelihood for tribal families.
- Introducing of hybrid poultry birds in backyard poultry may increase the livelihood.
- To introduce Pratapdhan poultry birds among tribal farmers, 200 tribal farmers were selected and provided them to 20 birds of 6 week age to each farmer.
Description of Technology
- Pratapdhan breed was developed by crossing (native x colour broiler x RIR) .
- Each selected farmers were trained at KVK in poultry rearing before providing them birds along with necessary equipments.
Success Points
- Farmers are ready to accept Pratapdhan birds because their habits are almost similar to deshi breed.
- Collective market is developed for buyers.
- Multi colour and higher body weight and egg production as compare to native birds.
- Good adaptability and local environment.
- Attractive multi colour feather pattern, as rural people like coloured birds from aesthetic points of view and better looking, because of colour plumage birds have camouflagic characters to protect themselves from predator.
- Longer shank length which help in self protection from predators in backyard areas.
- Good adaptability in backyard/ free range, it has good immune competence in the scarcity of good quality food and drinking water, the birds have to room into dirty surrounding in search of food.
Outcome
- Body weight of mature cock is 90 to 110 % higher.
- Egg laying start in 150 days as compared to in deshi breed 182 days.
- Produce brown shell eggs.
- Having broody characteristics.
- Fast growth rate with average adult body weight 20 weeks of age ranged from 1478 to 3020 gm of male and 1283 to 2736 gm of female.
- Higher egg production 161 which is 274 % higher the local native (43 eggs).
Impact
- Gross income of Rs. 15,250 of one poultry unit (20 birds) at one year age as compared to local breed (Rs. 6,590).
- Secure their livelihood and to overcome with malnutrition problem.
- Reduction in migration of land less farmers.
Economic empowerment of tribal families through hybrid tomato cultivation
Background Information
- Vegetable cultivation is main source of livelihood for tribal farmers but declining production and income was a cause of great worry.
- Introducing of hybrid tomato production may increase the livelihood.
- To introduce hybrid tomato- Dev among tribal farmers, 40 tribal farmers were selected and provided them to 40 g seed of variety dev to each farmer.
- Tribal farmer Laxman packed his books from the school compound after class VIII. From than onwards he was involved in farming activities of his family. but was not satisfied with the income from traditional farming.
- Income from traditional crop alone is not sufficient for meeting total requirements of the family because of small size hording declining productivity due to various reasons and unstable price of commodity.
Description of Technology
- Each selected farmers were trained at KVK, Banswara in improved tomato production technology before providing them hybrid variety seed.
- All relevant information for cultivation of this remunerative crop was given under the supervision of KVK scientists.
- Transplanting was done in the month of October .
- Balance nutrient management with proper plant protection measures were adopted.
- Hands on experience was provided for techniques like azola cultivation and vermicomposting.
Success Points
- Farmers are ready to accept variety dev because it is high yielder as compare to local.
- Less fruit cracking.
- Good fruit firmness and quality .
- The crop was raised on trellis which also increased yield and maintained quality of fruits.
- Crop health was regularly monitored with help of scientists.
- Handling in product specific crates/bags, sorting and grading also fetched better price.
Outcome
- Higher yield of 158 q. obtained from 0.2 ha piece of land only.
- Gross income of Rs. 95,000 of from 0.2 ha in one season compare to local variety Rs. 50,000.
Impact
- Secure their livelihood and to overcome with malnutrition problem.
- Reduction in migration of land less farmers.
- Improved living & social status of tomato growers in the society.
- Few farmers have started to built their pakka houses and started to send their children in English medium school from the earnings of tomato.
- By Seeing the economic empowerment of Sh. Laxman through vegetable cultivation, many marginal farmers in the surrounding villages started vegetable cultivation in their fields.
- Apart from the enhanced income levels, significant improvement was seen in the food and nutritional security on the family members, especially children.
- Effective utilization of natural, human & social capital.