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महिलाओं के कठिन श्रम को बचाने हेतु कुछ उन्नत कृशि उपकरण
लेखिकाः श्रीमती रष्मि दवे, कार्यक्रम सहायक (गृह विज्ञान)
कृशि विज्ञान केन्द्र, बांसवाड़ा
कठिन श्रम आम तौर पर किसी भी व्यक्ति द्वारा महसूस की जाने वाली षारीरिक तथा मानसिक थकान है। कठिन श्रम किसी भी महिला या पुरुश के रहन-सहन या कार्य करने की अवस्थाओं केा प्रभावित करता है। महिलाएं बहुत सारे घरेलू व कृशि संबंधी कार्यों में अधिक समय तक व्यस्त रहती हैं। इस कारण उन्हें अपने आराम के लिए बहुत कम समय मिलता है और इसका महिलाओं के मानसिक व षारीरिक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है। ग्रामीण महिला घर व कृशि के कार्यों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कृशि में महिलाओं द्वारा किए जाने वाले सभी कार्य जैसे बुवाई, निराई, गुढ़ाई, खाद डालना, कटाई करने से लेकर भण्डारण करने तक का कार्य महिलाओं को हाथ से करना पड़ता है, साथ ही पषुओं के लिए चारा खेत से घर तक लाना आदि कार्य भी थका देने वाले होते हैं। इनमें से कई कार्यों के लिए छोटे किंतु उपयोगी उन्नत कृशि उपकरण वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए हैं जिनसे कार्य अच्छा तथा कम समय में पूरा होता है। इसके साथ-साथ इनके उपयोग में थकावट कम होती है तथा इनका उपयोग सुरक्षित भी है। विषेश तौर से किसान महिलाओं को इन उपकरणों के बारे में जानकारी होना आवष्यक है, जिससे वे इनका अधिक से अधिक प्रयोग कर अपने समय, श्रम तथा पैसे की बचत कर सकें।
उन्नत दरांती
वैसे तो फसल काटने के लिए रीपर, कम्बाइन आदि अत्याधुनिक मषीनों का विकास हो चुका है, किंतु जोत का आकार छोटा होने तथा किसानों की माली हालक ठीक नहीं होने के कारण हमारे यहां आज भी अधिकांष किसान फसल काटने के लिए दराती अथवा हँसिये का ही प्रयोग करते हैं। इन किसानों और किसान महिलाओं को लाभ पहुंचाने की दृश्टि से विभिन्न प्रकार की अच्छी दरांतियों का विकास किया गया है जिन्हें उन्नत दरांती के नाम से जाना जाता है।
उन्नत दरांती में सीधी धारदार ब्लेड के स्थान पर दांतेदार ब्लेड का उपयोग किया जाता है, जिसमें दांतों की संख्या प्रति सेमी 4 से 10 तक हो सकती है। दंातों की ऊँचाई लगभग 0.5 मिमी से 2 मिमी तक रखी जाती है। इसके अतिरिक्त ब्लेड का आकार भी पारम्परिक दरांती की ब्लेड के आकार से थोड़ा भिन्न रखा जाता है। पारम्परिक दरांती की ब्लेड अधिक गोलाई लिए हुए होती है जबकि उन्नत दरांती की ब्लेड थोड़ी कम गोलाई लिए हुए होती है। उन्नत दरांती के हत्थे का व्यास बीच में से अधिक तथा किनारों पर कम रखा जाता है। कई बार हत्था थोड़ा घुमावदार भी बनाया जाता है। इन परिवर्तनों से हाथ की हत्थे पर पकड़ मजबूत रहती है। उन्नत दरांती पारम्परिक दरांती से भार में काफी हल्की होती है।
पारम्परिक दरांती की ब्लेड सीधी धारदार होती है। अतः इससे फसल को काटने के लिए फसल को एक हाथ से दरांती की गोलाई के बीच पकड़ कर दूसरे हाथ से दरांती से झटका देना होता है, जबकि उन्नत दरांती में दांतेदार ब्लेड होने के कारण फसल काटने में रगड़ के सिद्धांत का उपयोग किया जाता है। अतः उन्नत दरांती से फसल काटने में ताकत कम लगानी पड़ती है। काटने में कम ताकत लगने से तथा वजन में हल्की होने के कारण उन्नत दरांती से कार्य करने में थकावट कम आती है। साँस की गति, नाड़ी की गति तथा षरीर के भीतर होने वाले परिवर्तनों के आधार पर मनुश्य में होने वाली थकान को नापा जा सकता है। इन आधारों पर किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि उन्नत दरांती से परम्परागत दरांती की तुलना में थकावट 16-17 प्रतिषत तक कम आती है। इसके अलावा उन्नत दरांती से फसल को जमीन के अधिक पास से काट सकते हैं, जिससे हमें अधिक मात्रा में भूसा प्राप्त होता है। इससे अगली फसल के लिए खेत तैयार करने में भी आसानी रहती है। उन्नत दरांती का मूल्य लगभग 40/- होता है, अतः किसान महिलाएं इसे आसानी से खरीद भी सकती हैं।
मक्का छिलक
भूट्टों से मक्का निकालने के लिए आजकल षक्ति चालित गहाई यंत्र उपलब्ध हैं किन्तु आज भी ऐसे कई गांव हैं जहां भूट्टों से मक्का निकालने का कार्य हाथ से छीलकर अथवा उन्हें कूटकर किया जाता है। हाथ से छिलने में श्रम अधिक लगता है जबकि कूटने पर दाने टूटते अधिक हैं और काफी दाने भूट्टों पर रह भी जाते हैं। ऐसे स्थानों के लिए एक छोटे किंतु उपयेागी यंत्र का उपयोग किया गया है, जिसकी सहायता से भूट्टों से मक्का के दाने आसानी से अलग किए जा सकते हैं।
यह यंत्र लगभग साढ़े छः सेमी लम्बे तथा लगभग सात सेमी व्यास के एक पाइप के टुकड़े का बना होता है। इस टुकड़े के अंदर चार पत्तियाँ लगाई जाती है। भूट्टे से दाना अलग करने के लिए इस यंत्र के अंदर भूट्टे को डालकर उसे धीरे-धीरे घुमाया जाता है। यंत्र के अंदर लगी पत्तियों से रगड़ के कारण भूट्टे से दाने अलग हो जाते हैं। इस यंत्र से दाने लगभग 18-22 किग्रा प्रति घंटे की गति से निकाले जा सकते हैं। यह गति हाथ से भूट्टा छिलने की गति से अधिक किन्तु कूट कर दाना निकालने की गति से कम है। किंतु इस यंत्र से दाने टूटते नहीं हैं। साथ ही इससे प्राप्त दाने काफी साफ भी होते हैं, जिनको सामान्यतया वापस साफ करने की आवष्यकता नहीं होती। इसके अलावा सावधानी से कार्य करने पर इससे भूट्टे पर स्थित सभी दाने अलग किए जा सकते हैं और कोई भी दाना भूट्टे पर नहीं रहता।
इस यंत्र का मूल्य लगभग 25/- है। दाने निकालने के लिए आवष्यक श्रम के आधार पर गणना की जाए तो इससे दाने निकालने का खर्च लगभग 55/- प्रति क्विंटल आता है।
मूंगफली छिलक
गांवों में मूंगफली छिलने का कार्य सामान्तया महिलाओं द्वारा हाथ से ही किया जाता है। जब अधिक मात्रा में मूंगफली छिलने की आवष्यकता पड़ती है तब फर्ष पर मूंगफलियां रखकर उन पर मिट्टी का कवेलु रगड़ते हैं। हस्तचलित मूंगफली छिलने के यंत्र में भी रगड़ के सिद्धांत का ही प्रयोग किया जाता है। इस यंत्र के नीचे की ओर एक अर्ध चंद्राकार जाली होती है, जिसके ऊपर एक दांतेदार प्लेट लगी होती है। इस प्लेट को हत्थे की सहायता से आगे-पीछे घुमाया जा सकता है। मूंगफली छिलने के लिए पर्याप्त मात्रा में मूंगफली यंत्र के अंदर डालकर प्लेट को आगे-पीछे घुमाया जाता है। जाली तथा प्लेट के मध्य आई मूंगफली पर रगड़ पड़ने के कारण इसके ऊपर का छिलका टूट जाता है और छिलका तथा मूंगफली दोनों ही जाली में से होकर नीचे गिर जाते हैं। बाद में उन्हें साफ कर अलग-अलग कर लिया जाता है।
इस यंत्र का वजन लगभग 12-15 किग्रा होता है। अतः इसे आसानी से इधर-उधर लाया, ले जाया जा सकता है। इसकी मूंगफली छिलने की दक्षता 98 प्रतिषत तक होती है। इससे दाने बहुत कम लगभग 2.5 प्रतिषत टूटते हैं। इस यंत्र से प्रति घंटा लगभग 40-50 किग्रा मूंगफली छिली जा सकती हैं। इसका मूल्य लगभग 600/- है। अतः किसान महिलाएं इसे भी आसानी से खरीद कर उपयोग में ला सकती हैं।
पहिये वाली खुरपी
निराई-गुड़ाई कृशि के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है। यह कार्य भी सामान्यतया किसान महिलाओं द्वारा ही किया जाता है। इस कार्य के लिए विभिन्न प्रकार की खुरपियों, कुदाली आदि का उपयोग किया जाता है। पारम्परिक खुरपियों, कुदाली आदि से कार्य बैठकर अथवा झुकर किया जाता है। इससे थकावट जल्दी आती है तथा काम भी कम होता है। अतः कई प्रकार की आधुनिक खुरपियों का विकास किया गया है। पहिये वाली खुरपी उनमें से एक है।
पहिये वाली खुरपी में आगे की ओर एक पहिया लगा होता है, जो लोहे की गोल अथवा चैकोर छड़ से बनाया जाता है। इसके साथ लोहे के पतले पाइप लगाकर उन पर एक हेण्डल लगाया जाता है। पाइप के साथ एक खुरपी लगाई जाती है। इस खुरपी का उपयोग करने के लिए इसका हेण्डल पकड़ कर इसको धकलते हुए आगे चलते हैं। पहिये के कारण इसको चलाने में ताकत कम लगती है। धक्के के कारण पहिये के पीछे लगी खुरपी मिट्टी को खोदते हुए निराई-गुड़ाई का कार्य करते हुए चलती है। यह विभिन्न प्रकार की बनाई जाती है और कई बार इसमें दांतेदार पहिये भी लगाए जाते हैं। एक अच्छी पहिये वाली खुरपी को लगभग 500/- में खरीदा जा सकता है। पहिये वाली खुरपी के साथ बीज की बुवाई की प्रणाली लगा कर उसे मानव चलित बीज बुवाई मषीन भी बनायी जा सकती है। इसमें बीज भरने के लिए टाॅपर तथा आवष्यक मात्रा में बीज नापने के लिए प्रणाली लगी होती है। छोटे खेतों में बीज बोने तथा खेतों में जहां बुवाई रह जाती है वहां बुवाई के लिए इस मषीन का उपयोग किया जा सकता है।
उन्नत घट्टी
ग्रामीण महिलाओं को लाभ पहुंचाने की दृश्टि से घर में आटा पीसने के लिए उन्नत घट्टी का विकास किया गया है। इसके केन्द्र में एक छर्रे का प्रयोग किया गया है, जिससे इसको घुमाने में कम ताकत लगानी पड़ती है। इसके साथ-साथ घट्टी के दोनों पाटों के बीच अंतराल कम ज्यादा करने के लिए भी इसमें ऊपर से ही व्यवस्था की गई है। इस घट्टी का प्रयोग करने पर महिलाओं में थकावट कम होती है तथा कम समय में अधिक आटा पीसा जा सकता है। घट्टी के मध्य लगने वाली छर्रे वाली चाकी का मूल्य लगभग 30-40 रूपये है।
षोवेल
यह भी उन्नत कृशि उपकरण है, जिसके द्वारा मिट्टी को अथवा कृशि अपषिश्ट को एकत्रित करके उठाया जा सकता है। यह षोवेल खाद बनाने में भी काम में लिया जाता है।
हाथ ट्राॅली
यह लोहे से बनी दो पहियों वाली गाड़ी होती है, जिस पर ट्राॅली लगी होती है तथा सामान्य कद की ऊँचाई के अनुसार हैण्डल लगा होता है। इस ट्राॅली का उपयोग कृशि अपषिश्ट को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में किया जाता है। इससे एक ही बार में ज्यादा सामग्री ले जाई जा सकती है और पहियों के कारण ये आसानी से चलाई जा सकती है, जिसमें श्रम कम लगता है तथा सिर पर भार ले जाने की परेषानी से बचा जा सकता है।
रेक (पंजा)
कचरा व अपषिश्ट को एकत्रित करने हेतु इसका प्रयोग किया जाता है। यह भी लोहे का पंजे के आकार का उपकरण है, जिसमें पंजा एक लम्बे डण्डे से जुड़ा होता है, जिसे पकड़ कर आसानी से सारा अपषिश्ट अथवा कचरा हटाया जा सकता है। यह उपकरण पषु चारागाहों हेतु उपयोगी है। इस प्रकार हम देखते हैं कि महिलाओं के लिए उपयोगी कई छोटे-छोटे किन्तु महत्वपूर्ण उपकरणों का विकास किया जा चुका है। किन्तु इन उपकरणों के बारे में किसानों तथा किसान महिलाओं को जानकारी बहुत कम है, जिसके अभाव में इनका उपयोग नहीं हो पा रहा है। कई बार यह देखा गया है कि जानकारी होते हुए भी हिचकिचाहट के कारण छोटे किसान इनका प्रयोग नहीं करते हैं। अतः आज आवष्यकता इस बात की है कि इन उपकरणों के बारे में किसानों तथा किसान महिलाओं को प्रषिक्षणों एवं प्रदर्षनों के माध्यम से सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराई जाए, जिससे वे इनका प्रयोग बिना हिचकिचाहट के कर सकें। इन छोटे-छोटे कृशि उपकरणों के उपयोग से कृशक महिलाएं न केवल अपने समय, श्रम तथा पैसे की बचत कर सकेंगी वरन् उनमें थकावट भी कम होगी और वे षारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ रहकर खुषहाली का जीवन व्यतीत कर सकेंगी।
उद्यमिता विकास द्वारा आर्थिक सषक्तिकरण
लेखकः रष्मि दवे
तकनीकी सहायक, कृशि विज्ञान केन्द्र, बांसवाड़ा
उद्यम से तात्पर्य ऐसा कार्य जिससे आय अर्जित की जा सके या जिसको करने से लाभ कमाया जा सके। महिला उद्यमिता को किसी भी देष की आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत माना गया है। वर्तमान में इसकी आवष्यकता को महसूस किया गया है तथा महिलाएं भी इस क्षैत्र में अपना हुनर साबित कर रही है लेकिन फिर भी पुरुशों की तुलना में महिला उद्यमियों की संख्या बहुत कम है। जब हम ग्रामीण परिवेष की बात करते हैं तो खेती-बाड़ी से अब उतना लाभ नहीं कमाया जा सकता है जितना पहले समय में। इसके पीछे बहुत से कारण रहे हैं जैसेः उर्वरा षक्ति में कमी होना, रासायनिक खादों व रसायनों का अधिक प्रयोग करना आदि। ऐसे समय को देखते हुए यह जरुरत है कि किसान महिलाएं अपने और परिवार की आवष्यकताओं को पूरा करने के लिए कोई ऐसा कार्य करें जो वे अपने घर बैठे व घर में उपलब्ध संसाधनों द्वारा कर सकें तथा कम पूंजी में अधिक लाभ कमा सकें। उद्यमी वे ही नहीं होते जो बड़ी पूंजी के साथ कोई बड़ा व्यवसाय करते हैं कि बल्कि छोटी पूंजी के साथ भी यदि समझदारी से कार्य करें तो वह लाभ कमा सकती हैं।
महिला को उद्यम प्रारम्भ करने से पहले
- उद्यम की तकनीकी जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए। बाजार का सर्वेक्षण कर पता करना चाहिए कि किस चीज अथवा उद्यम की आवष्यकता महसूस की जा रही है और क्या वो यह कार्य कर सकती है या उस कार्य के लिए उसके पास पर्याप्त धन है या जुटा पायेगी ? क्या कच्चे माल के लिए स्त्रोत है की जानकारी पहले जुटा लें।
- जोखिम उठाने को तैयार रहना चाहिए।
- अच्छी नेता के गुण होने चाहिए।
- व्यवहार कुषल हो।
- कार्य कौषल।
- दूरदर्षिता हो।
- अनुभव से सीखने की योग्यता हो।
- रूचि व आत्मविष्वासी हो।
- निर्णय लेने की योग्यता हो।
उद्यम षुरू करने में सामान्यतया महिलाओं को धन, तकनीकी ज्ञान, प्रबंधन ज्ञान की कमी, प्रषिक्षण का अभाव, परिवार का असहयोग, उत्पाद वितरण की समस्या, विक्रय की जानकारियों का अभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनसे निपटने के लिए महिला का षिक्षित होना अति आवष्यक है। वे अपने उद्यम हेतु किसी अच्छे संस्थान से या जिले के कृशि विज्ञान केन्द्र पर जाकर प्रषिक्षण ले सकती हैं। विभिन्न योजनाओं और बैंकों से वित्त व्यवस्था की भी जानकारी प्रषिक्षण के दौरान दी जाती है।
केंद्र एवं राज्य स्तर की ऐसी अनेक सरकारी योजनाएँ भी हैं जो जरूरतमंद महिलाओं को प्रशिक्षण-सह-आय उपार्जक गतिविधियों की स्थापना के लिए सहायता उपलब्ध कराती है ताकि उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
मोदी सरकार ने कौशल विकास अभियान ‘स्किल इंडिया’’ कार्यक्रम को शुरु किया है। ये एक बहु.आयामी विकास योजना है। इसके अन्तर्गत भारतीयों को इस तरह से ट्रेनिंग दी जायेगी जिससे कि वो अधिक से अधिक रोजगार का सृजन कर सकें।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (स्किल इंडिया मिशन) की घोषणा भारत के प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने 15 जुलाई 2015 को अन्तर्राष्ट्रीय युवा कौशल दिवस पर की थी।
महिला उद्यमियों के लिए युक्तियाँ
- ऐसा व्यवसाय शुरू करें जो आपके और आपके व्यक्तिगत जीवन के लिए सुगम/उपयुक्त हो।
- उत्पाद /सेवा के बारे में अनुसंधान करें।
- बाजार का मूल्यांकन निर्धारण करें।
- पर्याप्त निधि के साथ व्यवसाय शुरू करें।
- नेटवर्किंग करें।
- पेशेवर व्यवसायियों से परामर्श करें।
एक लघु व्यवसाय की इकाई कोई भी व्यक्ति स्थापित कर सकता है। वह पुराना उद्यमी हो सकता है अथवा नवीन, उसे व्यवसाय चलाने का अनुभव हो सकता है और नहीं भी, वह शिक्षित भी हो सकता है अथवा अशिक्षित भी, उसकी पृष्ठभूमि ग्रामीण हो सकती अथवा शहरी।
वित्त का प्रबन्ध
उद्यमी को विश्लेषण कर यह ज्ञात करना होगा कि व्यवसाय में कितने पैसे की आवश्यकता होगी और कितने समय के लिए होगी। मशीन, भवन, कच्चा माल आदि खरीदने तथा श्रमिकों की मजदूरी आदि चुकाने के लिए उसे धन की आवश्यकता पड़ती है।
व्यवसाय का चुनाव
व्यवसाय करने की प्रक्रिया तब से प्रारम्भ हो जाती है जब उद्यमी सोचना शुरू कर देता है कि वह किस चीज का व्यवसाय करें। वह बाजार की मांग को देखते हुए व्यावसायिक अवसरों पर सोच सकता है। वह विद्यमान वस्तु अथवा उत्पाद के लिए निर्णय ले सकता है अथवा किसी नये उत्पाद पर विचार कर सकता है।
संगठन के स्वरूप का चयन
संगठन के विभिन्न स्वरूपों के विषय में आप जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। अब आपको अपनी आवश्यकता के अनुसार सर्वश्रेष्ठ रूप से चयन करना होगा। सामान्यतः एक लघु उद्यम को चुनना ठीक होगए जो एकल व्यवसायी अथवा साझेदारी का रूप ले सकती है।
व्यवसाय कहाँ शुरू किया जाये ?
इस स्थान के चुनाव में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। उद्यमी अपने स्थान पर अथवा किराये के स्थान पर व्यवसाय शुरू कर सकता है। वह स्थान किसी बाजार अथवा व्यापारिक कॉमप्लेक्स अथवा किसी औद्योगिक भूमि (स्टेट) में हो सकता है। 5 श्रम की उपलब्धि
एक उद्यमी अकेला ही व्यवसाय को नहीं चला सकता।
उसे अपनी सहायता के लिए कुछ व्यक्तियों को नौकरी पर रखना होगा। विशेष रूप से विनिर्माण कार्य के लिए उसे प्रशिक्षित तथा अर्ध-प्रशिक्षित कारीगरों को रखना होगा। कार्य शुरू करने से पूर्व उद्यमी को यह निश्चित कर लेना चाहिए कि क्या उसे किये जाने वाले कार्यों के लिए उचित प्रकार के कर्मचारी मिल पायेंगे।
ग्रामीण महिलाएं अपनी रूचि और उपलब्ध साधनों के अनुसार उद्योग कर सकती है जैसे अगर उनके घरों में सब्जियां ज्यादा होती हैं तो उनको सुखाकर या फलों व सब्जियों का परीरक्षण कर अचार, चटनी, षरबत, मुरब्बे, जैम, जेली आदि तैयार कर बेच सकती हैं। जो महिलाएं सिलाई करना जानती हैं वो दैनिक उपयोग के परिधान बना सकती हैं और बाजार में मिलने वाले छोटे पर्स, मोबाइल कवर, सारी कवर व काॅलेज बैग, आॅफिस बैग, लेपटाॅप बैग बनाकर बेच सकती हैं। महिलाएं बुनाई व कढ़ाई के उद्यम कर उत्पाद तैयार कर बेच सकती हैं। जिन महिलाओं के घर में पषु हैं वे डेयरी उद्योग लगा सकती हैं साथ ही वर्मीकम्पोस्ट जैसी जैविक खाद तैयार कर आर्थिक लाभ कमा सकती हैं। इसके अलावा साबुन, सर्फ, बर्तन साफ करने का पाउडर बना कर बेच सकती हैं। घर बैठे महिलाएं मसाले पीसकर तैयार करना, दालें तैयार करना, फल, सब्जी उत्पादन, नर्सरी लगाना आदि कार्य भी कर सकती हैं। जैसा कि बांसवाड़ा जिला बांस की बहुतायत के लिए प्रसिद्ध है तो घर बैठे महिलाएं बांस से विभिन्न सजावटी व उपयोगी वस्तुएं तैयार कर सकती हैं, जैसेः फोटो फ्रेम, पेन स्टेण्ड, मेग्जिन होल्डर, टोकरे, टोकरी आदि। इसके अतिरिक्त महिलाएं पापड़, बड़ी, चिप्स, बंधेज, दरी, आसन बनाना, पषु आहार बनाना आदि का कार्य भी आसान तरीके से कर अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं व आर्थिक रूप से स्वतंत्र बन सकती हैं।
महिला उद्यमिता हेतु नया उद्यम है मक्का प्रसंस्करण। जैसा कि हम सभी जानते हैं मक्का वागड़ की प्रमुख फसल है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग बहुतायत से एवं दैनिक रूप में किया जाता है। वैज्ञानिकों ने अनुसंधान द्वारा मक्का की उच्च गुणवत्ता युक्त मक्का ;फच्डद्ध विकसित की है जिससे अन्य मक्का की किस्मों की तुलना में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। अतः स्वास्थ्य की दृश्टि से फच्ड मक्का का सेवन अधिक उपयोगी है। इस मक्का को समाान्य मक्का की तरह विभिन्न व्यंजन बनाकर आहार में सम्मिलित किया जा सकता है। सामान्तया ग्रामीण महिलाएं मक्का की रोटी, बाटी व राब ही बनाती हैं। लेकिन मक्का से पराठे, चीले, अंकुरित चाट, उत्तपम, पोहा, टिकिया, भेल, पकौड़े, कटलेट आदि भी बनाये जा सकते हैं। उद्यमिता विकास हेतु कुछ व्यंजन मक्का के लम्बे समय तक बना कर रखे जा सकते हैं तथा पैकेजिंग के बाद बेचे भी जा सकते हैं, जैसेः मक्का की सेव, आटा सत्तु, पौश्टिक आटा, मक्का मैथी मठरी, तिलपारे, नाॅन खटाई, केक, पाॅप काॅर्न, बे्रड आदि।
आम के घरेलु उत्पाद
श्रीमती रष्मि दवे, डाॅ.आर.एल.सोनी एंव डाॅ.जी.एल.कोठारी
कृशि विज्ञान केन्द्र, बांसवाडा
आम का फल रसीला फल ही नही बल्कि जब बात इससे जुडे स्वास्थ्य सबंधी फायदे की आती है तो यह सब पर भारी पडता है। आम में विटामिन ए व बी प्रमुखता से पाये जाते है। आम फल षरीर को तुरन्त एनर्जी देता है। फलों के राजा आम की पहचान अपने देष में ही नही विदेषो में भी है। इसके अमृत तुल्य स्वाद का जादू सिर चढ़कर बोलता है। आम अपने विषिश्ट गुणो रंग व सुगन्ध के कारण सर्वाधिक लोकप्रिय फल है। आम में विटामिन ‘ए’ अधिक मात्रा में होता है साथ ही वसा व कैलोरी कम होती है। आम में अन्य पोशक तत्व भी पाये जाते है। आम में विटामिन ‘सी’ और विटामिन ‘बी’ की भाॅति लोहा पोटेषियम व प्रोटीन भी पाया जाता है। आम एषिया का मुख्य फल है और इस फल ने पूरे विष्व में अपना महत्व बढ़ाया है। वर्तमान समय में आम अपने पोशक मूल्यों, स्वाद, आकर्शक सुगन्ध और स्वास्थ्य सुधारक गुणों के कारण विष्व बाजार में उत्तम फल माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार आम की जड, पत्ते मलरोधक, वात, पित्त व कफ का नाष करने वाले होते हैै। यूनानी चिकित्सकों के अनुसार पका आम खाने से आलस्य दूर होता है तथा मूत्र संबधी रोगो का सफाया करता है। इतने सारे गुणो का सरताज आम बहुत जल्दी खराब भी हो जाता है। अतः आवष्यक है कि कच्चे व पके दोनों तरह के आमों का मूल्य संवर्धन कर अधिक बाजार मूल्य प्राप्त किया जाये तथा साथ ही प्रसस्करंण तकनीको को अपना कर षर्बत, पापड़, स्क्वेष तैयार किये जाये ताकि सभी परिवार के सदस्य इस आम का अमृत तुल्य स्वाद वर्श भर ले सकें। आम के पापड़ बनाने की तकनीक सरल है तथा इसे खाड़ी देषों में भी बेहद पसन्द किया जाता है और आम पापड़ को एक घरेलु लघु उद्योग के रूप में भी अपनाकर घर बैठे महिलायें अतिरिक्त आय अर्जित कर सकती है।
आम पापड़
सामग्री
S.No. | ||
---|---|---|
1 | टज्ञम् | 1 थ्क्ल्ज्ञै |
2 | च्भ्न्भ् | 400 गर््ज्ञम् |
3 | ख्ज्ञज्ञद्य त्ैल् | त्ळ म्ै ल्ग्ज्ञन्ै क्ै थ्ल्ए |
विधि
टज्ञम् क्ज्ञै थ्छल् क्श्र टफक्ड़ै क्ज्ञट ल्ै।। टफक्ड़ज्ञै क्ज्ञै थ्ज्ञज्ञैड़ज्ञ प्ज्ञन्भ् डज्ञल्क्श्र थ्म्क्स्श्र म्ै। प्भ्स् ल्ै।। टब् च्भ्न्भ् डज्ञल्क्श्र थ्ळल्ज्ञयै। ज्ब् त्क् च्भ्न्भ् घ्ज्ञफल् न् ज्ज्ञयै।। स्ज्ञफ च्ज्ञैक्ज्ञैश्र प्त्थ्ज्ञश्र/स्टभ्ल् प्ल्ैट प्श्र त्ैल् क्ज्ञ ळज्ञथ्ज्ञ घ्ज्ञफम्ज्ञयै। थ्फश्र त्ैयज्ञश्र श्रस् क्ज्ञै क्टज्ञैश्रभ् क्भ् स
1 थ्क्ल्ज्ञै टज्ञम् क्ै ग्फछै स्ै 500 गर््ज्ञम् टज्ञम् प्ज्ञप्ड त्ैयज्ञश्र ळज्ञैत्ै ळै, थ्ज्स्क्भ् ल्ज्ञग्त् म्ॅल्य 100 रू/थ्क्ल्ज्ञै ळै ज्ब्थ्क् ब्ज्ञज्ज्ञश्र भ्ज्ञज्ञव् 160 स्ै 180 रू पर््थ्त् थ्क्ल्ज्ञै ळै। टज्ञम् प्ज्ञप्ड, डध्ज्ञज्ञैग् द्वज्ञश्रज्ञ म्थ्ळल्ज्ञएै। 60 स्ै 80 रू क्ज्ञ ष्ज्ञफद्ध ल्ज्ञभ्ज्ञ पर््थ्त् थ्क्ल्ज्ञै त्ैयज्ञश्र टज्ञम् प्ज्ञप्ड प्श्र क्म्ज्ञ स्क्त्भ् ळै।
आम स्क्वैष
सामग्री
S.No. | ||
---|---|---|
1 | पके आम का रस | 1 किलो |
2 | मंेगो ऐसेंस | 3 मिली. |
3 | षक्कर | 1 किलो |
4 | साइट्रिक ऐसिड | 16-20 ग्राम |
5 | पानी | 1 लीटर |
6 | पीला रंग | आवष्यकतानुसार |
7 | पोटेषियम मेटाबाई सल्फाईट | 0.8 ग्राम/किलो तैयार स्क्वैष पर |
विधि
आम का रस निकालें, छाने व नाप लें। रस की मात्रा के अनुसार षक्कर, पानी व साइट्रिक एसिड की चाषनी बनायें, गर्म-2 ही आम के रस में छानें, ठण्डा करें। के.एम.एस. मिलायें, एसेंस व रंग डालकर बोतल में भर दें।
आम स्क्वैष घर पर बनाने की लागत 90 रू प्रति लीटर आती है जबकि इसका बाजार मूल्य 185 रू प्रति लीटर है।
कच्ची केरी, पुदीने का षर्बत
सामग्री
S.No. | ||
---|---|---|
1 | कच्ची केरी का रस | 1 किलो |
2 | हरे पुदीने का रस | 50 मिली |
3 | षक्कर | 2 किलो |
4 | काला नमक | 20 ग्राम |
5 | सादा नमक | 25 ग्राम |
6 | जीरा | 15 ग्राम |
7 | काली मिर्च | 10 ग्राम |
8 | हरा रंग | चुटकी भर |
9 | सिट्रिक एसिड | 10 ग्राम |
10 | सोडियम बेन्जोइट | 1 ग्राम प्रति लीटर तैयार षर्बत पर |
विधि
कच्ची केरी को छीलें। गूदे वाला भाग चाकू से काट लें। ज्यूसर से या मिक्सर से पीसकर रस निकालें। हरा पुदीना पीसकर रस निकालें। (100 ग्राम पत्तियों से 50 मिली. रस निकलेगा)। रस की मात्रा के अनुसार एक बर्तन में षक्कर पानी, साइट्रिक ऐसिड व अन्य सभी पिसे मसाले डालकर आँच पर चढ़ायें, षक्कर घुलने के बाद पाॅच मिनट तक उबलने दें, उतारें, गरम-गरम ही छानें, ठण्डा करें। अब इसमें केरी व पुदीने का रस मिलाकर, हरा रंग डालें। सोडियम बेन्जोएट अच्छी तरह मिलायें व बोतल में भर दें।
कच्ची केरी, पुदीने का षर्बत घर पर बनाने की लागत 80 रू प्रति लीटर आती है जबकि इसका
बाजार मूल्य 150 रू प्रति लीटर है।
केरी का लच्छा मुरब्बा
सामग्री
S.No. | ||
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1 | कद्दूकस केरी | 1 किलो (बिना रेषे वाली) |
2 | पानी | 100 मिली |
3 | षक्कर | 1.5 किलो |
4 | सिट्रिक ऐसिड | 3 ग्राम |
5 | अतिरिक्त सामग्री | इलायची, किषमिष,काजू, काली मिर्च, काला नमक, केसर (इच्छानुसार) |
विधि
केरी को छीलकर कद्दूकस कर लें। कड़ाही में डालकर पानी के छीटे मारे और अच्छी तरह सेक लें ताकि रेषे के आर-पार दिखने लगे। अब इसमें षक्कर डालें। षक्कर का पानी उड़ने पर साईट्रिक ऐसिड मिलायें। अच्छी तरह पक जाने पर मेवे आदि डालें व नीचे उतार लें। गर्म-2 ही चैड़े मुंह की बोतल में भर दें।
केरी का लच्छा मुरब्बा घर पर बनाने की लागत 120 रू प्रति किलो आती है जबकि इसका बाजार मूल्य 160 रू प्रति किलो है।
केरी की चटनी
सामग्री
S.No. | ||
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1 | कददूकस केरी | 1 किलो |
2 | नमक | 30-40 गा्रम |
3 | षक्कर | 1 किलो |
4 | लाल मिर्च | 20 ग्राम |
5 | प्याज | 100 ग्राम |
6 | गरम मसाला | 20 ग्राम |
7 | अदरक | 60 ग्राम |
8 | पानी | 150 मिली. |
9 | एसिटिक एसिड | 5 मिली./ किलो तैयार चटनी पर |
10 | सोडियम बेन्जोएट | 1 ग्राम/ किलो तैयार चटनी पर |
विधि
कच्ची केरी को छीलें व कद्दूकस कर लें। इसमें प्याज व अदरक पीस कर मिलाऐं। पानी डालें और प्रेषर कुकर में 2 सीटी तक पकायें। अब इसमें षक्कर डालें व पकायें। षक्कर गलने के बाद मिर्ची, गरम, मसाला डालें व लगभग तैयार होने पर नमक डालकर प्लेट टैस्ट करें। नीचे उतारें, एसिटिक एसिड, सोडियम बेन्जोएट मिलाऐं। (चाहे तो खरबूजे के बीज व किषमिष डाल सकते है।)
केरी की चटनी घर पर बनाने की लागत 100 रू प्रति किलो आती है जबकि इसका बाजार मूल्य 140 रू प्रति किलो है।
केरी का अचार
सामग्री
S.No. | ||
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1 | केरी के टुकडे | 1 किलो |
2 | मेथी दाना | 50 गा्रम |
3 | राई | 200 ग्राम |
4 | सौफ | 50 ग्राम |
5 | लाल मिर्च | 30 ग्राम |
6 | हल्दी | 25 ग्राम |
7 | नमक | 50 ग्राम |
8 | तेल | 400 मिली लीटर |
विधि
आमो को अच्छी तरह धोकर पोछ ले। 4-8 फाके कर ले और गुठली अलग कर लें। कढ़ाई में तेल गरम करें व उतार क ठण्डा कर लें। मैथी, सौफ व राई को दरदरा पीस लें। राई, सौफ, मेथी दाना व सभी मसाले डालकर मिला लें। ठण्डे तेल में सभी मसाले व आम के टुकडे मिलाकर बर्तन में भर दें, व अचार के उपर तक तेल रहने दें।
केरी का अचार घर पर बनाने की लागत 110 रू प्रति किलो आती है जबकि इसका बाजार मूल्य 200 रू प्रति किलो है।
सामग्री
S.No. | ||
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प्रसस्ंकरित सोयाबीन से तैयार करें विभिन्न उत्पाद
सोयाबीन इस समय विश्व में खास तेल व उत्तम गुणों से युक्त प्रोटीन के एक स्त्रोत के रूप में अपनी पहचान बना चुकी है। सोयाबीन पौषक तत्वों से परिपूर्ण एवं पौषण की खान के रूप में जाना जाता है इसलिये इसे चमत्कारी दाने की उपाधि दी गयी है। इसमें उपस्थित प्रोटीन अन्य सभी उपलब्ध स्त्रोंतो की तुलना में सबसे अधिक लगभग 40 प्रतिशत उत्कृष्ट किस्म की प्रोटीन व 20 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है। 100 ग्राम सोयाबीन से 432 कैलोरी ऊर्जा मिलती है।
सोबाबीन मे